एसीडीटी से बचाने के आयुर्वेदिक उपचार

एसिडिटी बढने के कई कारण होते हैं जैसे कि समय पर भोजन न करना। अजीर्ण होने पर भी गरिष्ठ भोजन करना। ज्यादा मिर्च-मसाले वाला भोजन का सेवन करना। भोजन करने के बाद दिन में सोना। चटपटे और बाजार के चीजों का अत्यधिक सेवन अर्थात जंक फूड बहुत ज्याद खाना। पानी कम पीना। ज्यादा देर तक खाली पेट रहना। इसके अलावा अधिक समय तक मानसिक रूप से तनावग्रस्त रहने से भी एसिडिटी बढ़ती है।
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एसिडिटी के लक्षणों में हैं सीने और छाती में जलन। खाने के बाद या प्रायरू सीने में दर्द रहता है, मुंह में खट्टा पानी आता है। इसके अलावा गले में जलन और अपचन भी इसके लक्षणों में शामिल होता है। जहां अपचन की वजह से घबराहट होती है, खट्टी डकारें आती हैं। वहीं खट्टी डकारों के साथ गले में जलन-सी महसूस होती है। यदि आपको एसिडिटी की समस्या है, तो आप इस दौरान होने वाले असहनीय दर्द से जरूर वाकिफ होंगे और इस दर्द से छुटकारा पाने के लिए दवाओं का इस्तेमाल भी करते होंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिना दवा लिए प्राकृतिक उपचार से एसिडिटी के दर्द से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है।
पपीता - एसिडिटी के शिकार रोगियों के लिए पपीता रामबाण की तरह है। पपीते एसिडिटी के इलाज में कारगर है। इसमें पैपीन नामक एंजाइम पाया जाता है, जो पाचन क्रिया सुधारने में मदद करता है। इसके साथ ही पपीते में पोटैशियम भी पाया जाता है, जो आंतों के लिए लाभदायक है। पपीता में मौजूद विटामिन सी एसिडिटी को बनने से रोकता है। एसिडिटी के उपचार के लिए पपीते को फल के रूप में खाया जा सकता है। हालांकि, जिन्हें फल के रूप में पपीता पसंद न हो उनके लिए पैपीन नामक गोलियां भी बाजार में उपलब्ध हैं।
चेरी - चेरी में काफी मात्रा में एंटीऑक्सिडेंट पाया जाता है, जो एसिडिटी के इलाज में मदद करता है। इसके साथ ही यह विटामिन सी और पोटैशियम का भी अच्छा स्रोत है। यह पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। एसिडिटी से छुटकारे के लिए आप चेरी को फल के रूप में खा सकते हैं या फिर चेरी का ज्यूस भी फायदेमंद होगा।
अदरक - अदरक पेट के लिए काफी अच्छा होता है। अदरक के टुकड़ों को पानी में उबालकर इसे पी सकते हैं। इसका स्वाद काफी तीखा होता है, चाहें तो इसमें शहद मिला सकते हैं। जिन्हें अदरक का स्वाद पसंद न हो, वो ऑर्गेनिक अदरक कैंडी और अदरक की चाय ले सकते हैं।
� मुलेठी का चूर्ण या काढ़ा बनाकर उसका प्रयोग रोग को नष्ट करता है।
� नीम की छाल का चूर्ण या रात में भीगाकर रखी छाल का पानी छानकर पीना रोग को शांत करता है। अम्लपित्त (एसीडीटी) रोग में तरल पदार्थ (माइल्ड लेक्सेटिव) देना चाहिए।
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� इस हेतु त्रिफला का प्रयोग या दूध के साथ गुलकंद का प्रयोग या दूध में मुनक्का उबालकर सेवन करना चाहिए।
� मानसिक तनाव कम करने हेतु योगए आसन एवं औषध का प्रयोग करें।
क्या खाएँ- अम्लपित्त रोगी को मिश्रीए आँवलाए गुलकंदए मुनक्का आदि मधुर द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिए। बथुआ, चौलाई, लौकी, करेला, धनिया, अनार, केला आदि शाक व फलों का प्रयोग करें। दूध का प्रयोग नियमित रूप से करें।
क्या न खाएँ- नए धान्य, अधिक मिर्च-मसालों वाले खाद्य पदार्थ, मछली, मांसाहार, मदिरापान, गरिष्ट भोजन, गर्म चाय-कॉफी, दही एवं छाछ का प्रयोग, साथ ही तुवर दाल एवं उड़द दाल का प्रयोग कदापि न करें।
अम्लपित्त रोग की समय रहते चिकित्सा न करवाने या रोग को अनदेखा करने पर रोग "अल्सर" का रूप धारण करता है। आयुर्वेद में अम्लपित्त को दूर करने हेतु अनेक औषधियाँ हैं, अपने चिकित्सक से सलाह लेकर इनका सेवन करें।
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धन्यवाद

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