जैविक कीटनाशक घर पर बनाने की विधियाँ
loading...
जैविक पध्दति द्वारा जैविक कीट एवं व्याधि नियंत्रक:जैविक कीट एवं व्याधि नियंजक के नुस्खे विभिन्न कृषकों के अनुभव के आधार पर तैयार कर प्रयोग किये गये हैं, जो कि इस प्रकार हैं-
1. गौ-मूत्
गौमूत्र, कांच की शीशी में भरकर धूप में रख सकते हैं। जितना पुराना गौमूत्र होगा उतना अधिक असरकारी होगा । 12-15 मि.मी. गौमूत्र प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रेयर पंप से फसलों में बुआई के 15 दिन बाद, प्रत्येक 10 दिवस में छिड़काव करने से फसलों में रोग एवं कीड़ों में प्रतिरोधी क्षमता विकसित होती है जिससे प्रकोप की संभावना कम रहती है।
नीम के उत्पाद
loading...
नीम भारतीय मूल का पौघा है, जिसे समूल ही वैद्य के रूप में मान्यता प्राप्त है। इससे मनुष्य के लिए उपयोगी औषधियां तैयार की जाती हैं तथा इसके उत्पाद फसल संरक्षण के लिये अत्यन्त उपयोगी हैं।नीम पत्ती का घोलhttp://krushidarpan.blogspot.in/2016/03/high-blood-presure.html
नीम की 10-12 किलो पत्तियॉ, 200 लीटर पानी में 4 दिन तक भिगोंयें। पानी हरा पीला होने पर इसे छानकर, एक एकड़ की फसल पर छिड़काव करने से इल्ली की रोकथाम होती है। इस औषधि की तीव्रता को बढ़ाने हेतु बेसरम, धतूरा, तम्बाकू आदि के पत्तों को मिलाकर काड़ा बनाने से औषधि की तीव्रता बढ़ जाती है और यह दवा कई प्रकार के कीड़ों को नष्ट करने में यह दवा उपयोगी सिध्द है।
loading...
नीम की निबोली नीम की निबोली 2 किलो लेकर महीन पीस लें इसमें 2 लीटर ताजा गौ मूत्र मिला लें। इसमें 10 किलो छांछ मिलाकर 4 दिन रखें और 200 लीटर पानी मिलाकर खेतों में फसल पर छिड़काव करें।नीम की खली
जमीन में दीमक तथा व्हाइट ग्रब एवं अन्य कीटों की इल्लियॉ तथा प्यूपा को नष्ट करने तथा भूमि जनित रोग विल्ट आदि के रोकथाम के लिये किया जा सकता है। 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से अंतिम बखरनी करते समय कूटकर बारीक खेम में मिलावें।
loading...
2. आइपोमिया (बेशरम) पत्ती घोलआइपोमिया की 10-12 किलो पत्तियॉ, 200 लीटर पानी में 4 दिन तक भिगोंये। पत्तियों का अर्क उतरने पर इसे छानकर एक एकड़ की फसल पर छिड़काव करें इससे कीटों का नियंत्रण होता है।
loading...
3. मटठामट्ठा, छाछ, मही आदि नाम से जाना जाने वाला तत्व मनुष्य को अनेक प्रकार से गुणकारी है और इसका उपयोग फसलों मे कीट व्याधि के उपचार के लिये लाभप्रद हैं। मिर्ची, टमाटर आदि जिन फसलों में चुर्रामुर्रा या कुकड़ा रोग आता है, उसके रोकथाम हेतु एक मटके में छाछ डाकर उसका मुॅह पोलीथिन से बांध दे एवं 30-45 दिन तक उसे मिट्टी में गाड़ दें। इसके पश्चात् छिड़काव करने से कीट एवं रोगों से बचत होती । 100-150 मि.ली. छाछ 15 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करने से कीट-व्याधि का नियंत्रण होता है। यह उपचार सस्ता, सुलभ, लाभकारी होने से कृषकों मे लोकप्रिय है।
4. मिर्च/लहसुन
आधा किलो हरी मिर्च, आधा किलो लहसुन पीसकर चटनी बनाकर पानी में घोल बनायें इसे छानकर 100 लीटर पानी में घोलकर, फसल पर छिड़काव करें। 100 ग्राम साबुन पावडर भी मिलावे। जिससे पौधों पर घोल चिपक सके। इसके छिड़काव करने से कीटों का नियंत्रण होता है।
फ्री रिचार्ज एप्प True Balance डाउनलोड कीजिए और पाइये Free Balance , True Balance App की जानकारी के लिए यहाँ click कीजिए ।
5. लकड़ी की राख
1 किलो राख में 10 मि.ली. मिट्टी का तेल डालकर पाउडर का छिड़काव 25 किलो प्रति हेक्टर की दर से करने पर एफिड्स एवं पंपकिन बीटल का नियंत्रण हो जाता है ।
6. ट्राईकोडर्मा
ट्राईकोडर्मा एक ऐसा जैविक फफूंद नाशक है जो पौधों में मृदा एवं बीज जनित बीमारियों को नियंत्रित करता है।
बीजोपचार में 5-6 ग्राम प्रति किलोगाम बीज की दर से उपयोग किया जाता है। मृदा उपचार में 1 किलोग्राम ट्राईकोडर्मा को 100 किलोग्राम अच्छी सड़ी हुई खाद में मिलाकर अंतिम बखरनी के समय प्रयोग करें।
कटिंग व जड़ उपचार- 200 ग्राम ट्राईकोडर्मा को 15-20 लीटर पानी में मिलाये और इस घोल में 10 मिनिट तक रोपण करने वाले पौधों की जड़ों एवं कटिंग को उपचारित करें।
3 ग्राम ट्राईकोडर्मा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 10-15 दिन के अंतर पर खड़ी फसल पर 3-4 बार छिड़काव करने से वायुजनित रोग का नियंत्रण होता है।
अधिक जानकारी के लिए हमसे सम्पर्क करे धन्यवाद
loading...
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें