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गेहू की उपज में वृध्दि के उपाय

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गेहूँ की उपज लगातार बढ रही है। यह वृध्दि गेहूँ की उन्नत किस्मों तथा वैज्ञानिक विधियों से हो रही है। यह बहुत ही आवश्यक है कि गेहूँ का उत्पादन बढाया जाय जो कि बढती हुई जनसंख्या के लिए आवश्यक है। गेहूँ की खेती पर काफी अनुसंधान हो रहा है और उन्नत किस्मों के लिए खेती की नई विधियां निकाली जा रही है। इसलिए यह बहुत ही आवश्यक है कि प्रत्येक किसान को गेहूँ की खेती की नई जानकारी मिलनी चाहिए जिससे वह गेहूँ की अधिक से अधिक उपज ले सके।
उन्नत किस्में
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गेहूँ की अधिक उपज लेने के लिए अपने क्षेत्र के लिए अनुमोदित उन्नत किस्म का चुनाव कीजिए। अच्छी उपज के लिए शुध्द प्रमाणित बीज उगाना चाहिए। दवा न मिली हो तो अवश्य मिला लें। खेत में पौधों की उचित संख्या के लिए आवश्यक है कि गेहूँ का जमाव कम से कम 85 प्रतिशत हो।
खेत की तैयारी
खरीफ की फसल की कटाई के बाद एक जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करें। फिर 2-3 इल्की जुताइयां करनी चाहिए। यदि खेत में नमी की कमी हो ता बोआई के 8-10 दिन पूर्व सिंचाई (पलेवा) करनी चाहिए। यदि खेत में गन्ना, धान या लाही है तो खडी फसल में सिचाई कर देनी चाहिए जो गेहूँ की बोआई के लिए ठीक रहेगा। बोआई से पहले खेत एकसार होना चाहिए। जहां दीमक तथा गुझिया का प्रकोप हो वहां 5 प्रतिशत एल्ड्रिन धूल 25 कि0ग्रा0 प्रति हैक्टर के हिसाब से आखिरी जुताई के समय खेत में डाल देनी चाहिए।
उर्वरक
नाइट्रोजन: अधिक उपज के लिए गेहूँ में 120 कि0ग्रा0 नाइट्रोजन प्रति हैक्टर के हिसाब से डालनी चाहिए। यदि खेत में पहले दलहनी फसल या हरी खाद डाली गई है तो यह मात्रा 100 कि0ग्रा0 प्रति हैक्टर रखी जा सकती है। नाइट्रोजन की दो-तिहाई या आधी मात्रा बोआई के समय, एक तिहाई या आधी मात्रा पहली सिंचाइ के समय कतारों के बीच में डालनी चाहिए। रेतीली भूमि में नाइट्रोजन तीन बार डाननी चाहिए। यदि धान के बाद गेहूँ बोया जा रहा है तो नाइट्रोजन 150 कि0ग्रा0 प्रति हैक्टर से देनी चाहिए।
फास्फोरस तथा पोटाश: फास्फोरस तथा पोटाश मिटटी की जांच के आधार पर डालना चाहिए। यदि जांच नही हो पाती है जो 50-60 कि0ग्रा0 प्रति हैटर की दर से फास्फोरस देना चाहिए। पोटाश खेत मे तभी डालना चाहिए जबकि इसकी कमी हो। यदि संभव हो तो उर्वरक को फर्टिसीडड्रिल से 3-5 से0मी0 बीज की बगल में डालना चाहिए। यदि यह मशीन न मिल सके तो उर्वरक एक समान बिखेर देने चाहिए। बीज तथा उर्वरक को आपस में कभी नही मिलाना चाहिए।
बोआइ का समय
गेहूँ की अधिक उपज के लिए समय पर बोआइ करना बहुत ही आवश्यक है। यदि कोई किस्म अगेती है और वह देर से बोई जाय जो उपज घट जाती है। उपज करीब 2-3 क् प्रति हैक्टर प्रति सप्ताह की दर से देरी के हिसाब से घटती है।
बीज की मात्रा
परीक्षणों से सिध्द हो चुका है कि गेहूँ की अच्छी उपज के लिए 100 कि0ग्रा0 बीज की मात्रा पर्याप्त रहती है। यदि गेहूँ देर में (दिसम्बर) बोया जाता है तो बीज की मात्रा बढाकर 125 कि0ग्रा0 प्रति हैक्टर कर देनी चाहिए।
बोआई की विधि
गेहूँ का बीज समुचित नमी वाली भूमि में 5 से0मी0 की गहराई पर डालना चाहिए। अधिक गहराई में बीज नहीं बोना चाहिए। कतारों की दूरी 18 सू0पी0 रखनी चाहिए।
सिंचाई
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जहां उचित मात्रा में पानी उपलब्ध है पहली सिंचाई गेहूँ में मुख्य जड निकलने पर करनी चाहिए जो समय पर बोए गए गेहूँ में 20-25 दिन बाद निकलती है। यदि गेहूँ देर में बोया गया है तो यह अवस्था 25-30 दिन बाद आती है। दूसरी सिंचाई गेहूँ में कल्ले निकलते समय करनी चाहिए। यह अवस्था गेहूँ बोने के 40-45 दिन बाद आती है। तीसरी सिंचाई गेहूँ में गांठं बनने के बाद करनी चाहिए। यह अवस्था गेहूँ बोने के 65-70 दिन बाद आती है। चौथी सिंचाई गेहूँ में फूल आते समय करनी चाहिए। यह अवस्था गेहूँ बोने के 90-95 दिन बाद आती है। पाँचवी सिंचाई गेहूँ के दानों में दूध पडते समय करनी चाहिए। यह अवस्था बोने के 105-110 दिन बाद आती है। छठी सिंचाई गेहूँ के दानों में आटा बनते समय करनी चाहिए। यह अवस्था बोने के 120-125 दिन बाद आती है। इस समय सिंचाई करते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि हवा तेज न चल रही हो अन्यथा फसल गिरने का अंदेशा बना रहता है। रेतीली भूमि में एक-दो अधिक सिंचाइयां करनी पडती है। गेहूँ में कितनी सिंचाई की जाय यह भूमि के प्रकार वर्षा तथा भूमि में पानी की सतह पर निर्भर करता है।
पानी कम होता
जहां पानी की मात्रा सीमित है वहां गेहूँ में सिंचाई, निम्न प्रकार से करनी चाहिए। यदि केवल एक सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध है तो यह सिंचाइ गेहूँ में मुख्य जड बनते समय अर्थात बोने के 20-25 दिन बाद करनी चाहिए। यदि पानी दो सिंचाइयों के लिए उपलब्ध है तो पहली सिंचाई मुख्य जड बनेत समय तथ दूसरी सिंचाई फूल आने अर्थात बोने के 20-25 दिन बाद करनी चाहिए।
यदि पानी तीन सिंचाइयों के लिए उपलब्ध है तो पहली सिंचाई मुख्य जड बनते समय, दूसरी सिंचाई गांठ बनते समय, तीसरी सिंचाई बालियां निकलने पर तथा चौथी सिंचाई दानों में दूध पडते समय करनी चाहिए। ये अवस्थाएं क्रमश: बोने के 20-25, 65-70, 85-90 तथा 105-110 दिन बाद आती है।
 खरपतवारों की रोकथाम
यों तो गेहूँ में मजदूरों द्वारा निराई-गुडाई करके काफी हद तक खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है लेकिन आजकल अधिक मजदूरी तथा मजदूर न मिलने के कारण कठिनाई होती है। इसलिए खरपतवारनाशक दवाइयों से खरपतवारों को नष्ट किया जाता है। गेहूँ में चौडी पत्ती वाले खरपतवारों को नष्ट करने के लिए 2-4, डी 0.5 कि0ग्रा0 सक्रिय अवयव प्रति हैक्टर को 400-600 लीटर पानी में मिलाकर छिडकना चाहिए।
कटाई
गेहूँ की कआई का समय भी महत्वपूर्ण है। यदि कटाई देर से की जाय तो काटते समय दाने झडते है। इसलिए गेहूँ की कटाई इस अवस्था से पहले कर लेनी चाहिए। कटाई के बाद फसल को धूप में अच्छी तरह सुखा कर गहाई भी कर लेनी चाहिए।
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