मूंगफली की आधुनिक खेती
नमस्कार आज हम आपको मूंगफली की फसल की जानकारी के साथ साथ अधिक से अधिक उत्पादन कैसे प्राप्त करे ।
मूंगफल में तेल 45 से 55 प्रतिशत, प्रोटीन 28 से 30 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेठ 21-25 प्रतिशत, विटामिन बी समूह, विटामिन-सी, कैल्शियम, मैग्नेशियम, जिंक फॉस्फोरस, पोटाश जैसे मानव शरीर को स्वस्थ रखनें वाले खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते है।
उन्नत
loading.....
किस्में
किस्म अवधि (दिन) उपज (क्विं/हैक्टर) विमोचन वर्ष
जे.जी.एन.-3 100-105 15-20 1999
जे.जी.एन.-23 90-95 15-20 2009
टी.जी.- 37ए. 100-105 18-20 2004
जे.एल.- 501 105-110 20-25 2010
मृदा एवं भूमि की तैयारी -
मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है फिर भी इसकी अच्छी तैयारी हेतु जल निकास वाली कैल्शियम एवं जैव पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मृदा उत्तम होती है। मृदा का पीएच मान 6.0 से 8.0 उपयुक्त रहता है। मई के महीने में खेत की एक जुताई मिट्टी पलटनें वाले हल से करके 2-3 बार हैरो चलावें जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जावें। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल करें जिससे नमी संचित रहें। खेत की आखिरी तैयारी के समय 2.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से जिप्सम का उपयोग करना चाहिए।
भूमि उपचार -
मूंगफली फसल में मुख्यतः सफेद लट एंव दीमक का प्रकोप होता है। इसलिए भूमि में आखरी जुताई के समय फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी से 20-25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से उपचारित करते है। दीमक का प्रकोप कम करने के लिये खेत की पूरी सफाई जैसे पूर्व फसलो के डण्ठल आदि को खेत से हटाना चाहिए और कच्ची गोबर की खाद खेत में नहीं डालना चाहिए। जिन क्षेत्रों में उकठा रोग की समस्या हो वहाँ 50 कि.ग्रा. सड़े गोबर में 2 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदनाशी को मिलाकर अंतिम जुताई के समय प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिला देना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन -
मिट्टी परीक्षण के आधार पर की गयी सिफारिशों के अनुसार ही खाद एवं उर्वरकों की मात्रा सुनिश्चित की जानी चाहिए। मूंगफली की अच्छी फसल के लिये 5 टन अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए। उर्वरक के रूप में 20:60:20 कि.ग्रा./है. नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटाश का प्रयोग आधार खाद के रूप में करना चाहिए। मूंगफली में गंधक का विशेष महत्व है अतः गंधक पूर्ति का सस्ता स्त्रोत जिप्सम है। जिप्सम की 250 कि.ग्रा. मात्रा प्रति
समूह-1 (मात्रा-कि.ग्रा. प्रति हैक्टर)
यूरिया, सु.फा. म्यू.पोटाश
43 375 33
समूह-2 (मात्रा-कि.ग्रा. प्रति हैक्टर)
डी.ए.पी. सु.फा. म्यू.पोटाश
109 63 33
बीजदर-
मूंगफली की गुच्छेदार प्रजातियों का 100 कि.ग्रा. एवं फैलने व अर्द्ध फैलने वाली प्रजातियों का 80 कि.ग्रा. बीज (दाने) प्रति हैक्टर प्रयोग उत्तम पाया गया है।
बीजोपचार-
बीजोपचार कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत + थाइरम 37.5 प्रतिशत की 2.5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से या 1 ग्रा. कार्बेन्डाजिम + ट्राइकाडर्मा विरिडी 4 ग्रा./कि.ग्रा. बीज को उपचार करना चाहिए। बुवाई पहले राइजोबियम एवं फास्फोरस घोलक जीवाणु (पी.एस.बी.) से 5-10 ग्रा./कि.ग्रा. बीज के मान से उपचार करें। जैव उर्वरकों से उपचार करने से मूंगफली में 15-20 प्रतिशत की उपज बढ़ोत्तरी की जा सकती है।सोयाबीन की फसल के बारे में जानने के यह क्लिक करे
बुवाई एवं बुवाई की विधि -
मूंगफली की बुवाई जून के द्वितीय सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह में की जाती है। झुमका किस्म के लिए कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखना चाहिए। विस्तार और अर्धविस्तारी किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 45 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सें.मी. रखना चाहिए। बीज की गहराई 3 से 5 से.मी. रखनी चाहिए। मूंगफली फसल की बोनी को रेज्ड/ब्रोड-बेड पद्धति से किया जाना लाभप्रद रहता है। बीज की बुवाई ब्रोड बेंड पद्धति से करने पर उपज का अच्छा प्रभाव पड़ता है। इस पद्धति में मूंगफली की 5 कतारों के बाद एक कतार खाली छोड़ देते है। इससे भूमि में नमीं का संचय, जलनिकास, खरपतवारों का नियंत्रण व फसल की देखरेख सही हो जाने के कारण उपज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण-
मूंगफली की अच्छी पैदावार लेने के लिये कम से कम एक निराई-गुड़ाई अवश्य करें। इससे जड़ों का फैलाव अच्छा होता है, साथ ही भूमि में वायु संचार भी बढ़ता है। और मिट्टी चढ़ाने का कार्य स्वतः हो जाता है, जिससे उत्पादन बढ़ता है। यह कार्य कोल्पा या हस्तचलित व्हील हो से करना चाहिए। रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण हेतु पेण्डीमिथेलीन 38.7 प्रतिशत 750 ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर की दर से बुवाई के 3 दिन के अंदर प्रयोग कर सकते है या खडी फसल में इमेजाथापर 100 मि.ली. सक्रिय तत्व को 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर बोनी के 15-20 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं। साथ ही एक निराई-गुड़ाई बुवाई के 30-35 दिन बाद अवश्य करें जो तंतु (पेगिंग) प्रक्रिया में लाभकारी होती है।
सिंचाई प्रबंधन -
मूंगफली वर्षा आधारित फसल है अतः सिंचाई की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती है। मूंगफली की फसल में 4 वृद्धि अवस्थाऐं क्रमशः प्रारंभिक वानस्पतिक वृद्धि अवस्था, फूल बनना, अधिकीलन (पैगिंग) व फली बनने की अवस्था सिंचाई के प्रति अति संवेदनशील है। खेत में अवश्यकता से अधिक जल को तुरंत बाहर निकाल देना चाहिए अन्यथा वृद्धि व उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
क्या आप जानते है ? ह्यूमिक एसिड क्या है और ये फसल के उत्पादन में कैसे वृध्दि करने के साथ साथ आपकी जमींन को बंजर होने से बचता है। जानने के लिए ऊपर वाली लाइन पर क्लीक करे।
कीटों की रोकथाम-
सफेद लट, बिहार रोमिल इल्ली, मूंगफली का माहू व दीमक प्रमुख है। सफेद लट की समस्या वाले क्षेत्रों में बुवाई के पूर्व फोरेट 10 जी या कार्बोयुरान 3 जी 20-25 कि.ग्रा/हैक्टर की दर से खेत में डालें।
दीमक के प्रकोप को रोकने के लिये क्लोरोपायरीफॉस दवा की 3 लीटर मात्रा को प्रति हैक्टर दर से प्रयोग करें।
रस चूसक कीटों (माहू, थ्रिप्स व सफेद मक्खी) के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./प्रति लीटर या डायमिथोएट 30 ई.सी. का 2 मि.ली./ली. के मान से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रयोग करें।
पत्ती सुरंगक कीट के नियंत्रण हेतु क्यूनॉलफॉस 25 ई.सी. का 1 लीटर/हैक्टर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
रोगों की रोकथाम-
मूंगफली में प्रमुख रूप से टिक्का, कॉलर और तना गलन और रोजेट रोग का प्रकोप होता है। टिक्का के लक्षण दिखते ही इसकी रोकथाम के लिए डायथेन एम-45 का 2 ग्रा./लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव 10-12 दिन के अंतर पर पुनः करें।
रोजेट वायरस जनित रोग हैं, इसके फैलाव को रोकने के लिए फसल पर इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./लीटर पानी के मान से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
खुदाई एवं भण्डारण -
मूंगफली में उचित भंडारण और अंकुरण क्षमता बनाये रखने के लिए खुदाई पश्चात् सावधानीपूर्वक सुखाना चाहिए। भंडारण के पूर्व पके हुये दानों में नमीं की मात्रा 8 से 10% से अधिक नहीं होना चाहिए। अन्यथा नमीं अधिक होने पर मूंगफली में एस्परजिलस प्लेक्स फफूंद द्वारा एफलाटाक्सिन नामक विषैला तत्व पैदा हो जाता है जो मानव व पशु के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। यदि मूंगफली को तेज धूप में सुखाये तो अंकुरण क्षमता का हा्रस होता है।
अंकुरण क्षमता को बनाये रखने के लिए -
उपयुक्त नमीं होने पर ही मूंगफली को जमीन से निकाले।
मूंगफली को भूमि से उखाड़ने के बाद इसके पौधों को उल्टा करके, छोटे-छोटे गट्ठर बनाकर फलियाँ हमेंशा धूप की तरफ होना चाहिए।
पूर्णतया सूखी फलियों को हवादार स्थान में भण्डारित करना चाहिए। जहाँ पर नमीं ग्रहण नहीं कर सकें या फिर प्रत्येक बोरे में कैल्शियम क्लोराइड़ 300 ग्राम प्रति 40 कि.ग्रा. बीज की दर से भंडारण करें।
भण्डारण के समय हानि पहुँचाने वाले कीट पतंगो से सुरक्षा रखें, जिससे भंण्डारण के समय फलियाँ खराब नहीं हो।
loading...
मूंगफली :~मूंगफल में तेल 45 से 55 प्रतिशत, प्रोटीन 28 से 30 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेठ 21-25 प्रतिशत, विटामिन बी समूह, विटामिन-सी, कैल्शियम, मैग्नेशियम, जिंक फॉस्फोरस, पोटाश जैसे मानव शरीर को स्वस्थ रखनें वाले खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते है।
उन्नत
loading.....
किस्में
किस्म अवधि (दिन) उपज (क्विं/हैक्टर) विमोचन वर्ष
जे.जी.एन.-3 100-105 15-20 1999
जे.जी.एन.-23 90-95 15-20 2009
टी.जी.- 37ए. 100-105 18-20 2004
जे.एल.- 501 105-110 20-25 2010
मृदा एवं भूमि की तैयारी -
मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है फिर भी इसकी अच्छी तैयारी हेतु जल निकास वाली कैल्शियम एवं जैव पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मृदा उत्तम होती है। मृदा का पीएच मान 6.0 से 8.0 उपयुक्त रहता है। मई के महीने में खेत की एक जुताई मिट्टी पलटनें वाले हल से करके 2-3 बार हैरो चलावें जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जावें। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल करें जिससे नमी संचित रहें। खेत की आखिरी तैयारी के समय 2.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से जिप्सम का उपयोग करना चाहिए।
भूमि उपचार -
मूंगफली फसल में मुख्यतः सफेद लट एंव दीमक का प्रकोप होता है। इसलिए भूमि में आखरी जुताई के समय फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी से 20-25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से उपचारित करते है। दीमक का प्रकोप कम करने के लिये खेत की पूरी सफाई जैसे पूर्व फसलो के डण्ठल आदि को खेत से हटाना चाहिए और कच्ची गोबर की खाद खेत में नहीं डालना चाहिए। जिन क्षेत्रों में उकठा रोग की समस्या हो वहाँ 50 कि.ग्रा. सड़े गोबर में 2 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदनाशी को मिलाकर अंतिम जुताई के समय प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिला देना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन -
मिट्टी परीक्षण के आधार पर की गयी सिफारिशों के अनुसार ही खाद एवं उर्वरकों की मात्रा सुनिश्चित की जानी चाहिए। मूंगफली की अच्छी फसल के लिये 5 टन अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए। उर्वरक के रूप में 20:60:20 कि.ग्रा./है. नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटाश का प्रयोग आधार खाद के रूप में करना चाहिए। मूंगफली में गंधक का विशेष महत्व है अतः गंधक पूर्ति का सस्ता स्त्रोत जिप्सम है। जिप्सम की 250 कि.ग्रा. मात्रा प्रति
loading...
हैक्टर की दर से प्रयोग बुवाई से पूर्व आखरी तैयारी के समय प्रयोग करें। मूंगफली के लिये 5 टन गोबर की खाद के साथ 20:60:20 कि.ग्रा./हैक्टर नत्रजन,फॉस्फोरस व पोटाश के साथ 25 कि.ग्रा./हैक्टर जिंक सल्फेट का प्रयोग आधार खाद के रूप में प्रयोग करने से उपज में 22 प्रतिशत वृद्धि प्रक्षेत्र परीक्षण व अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों में पायी गयी है।समूह-1 (मात्रा-कि.ग्रा. प्रति हैक्टर)
यूरिया, सु.फा. म्यू.पोटाश
43 375 33
समूह-2 (मात्रा-कि.ग्रा. प्रति हैक्टर)
डी.ए.पी. सु.फा. म्यू.पोटाश
109 63 33
बीजदर-
मूंगफली की गुच्छेदार प्रजातियों का 100 कि.ग्रा. एवं फैलने व अर्द्ध फैलने वाली प्रजातियों का 80 कि.ग्रा. बीज (दाने) प्रति हैक्टर प्रयोग उत्तम पाया गया है।
बीजोपचार-
बीजोपचार कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत + थाइरम 37.5 प्रतिशत की 2.5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से या 1 ग्रा. कार्बेन्डाजिम + ट्राइकाडर्मा विरिडी 4 ग्रा./कि.ग्रा. बीज को उपचार करना चाहिए। बुवाई पहले राइजोबियम एवं फास्फोरस घोलक जीवाणु (पी.एस.बी.) से 5-10 ग्रा./कि.ग्रा. बीज के मान से उपचार करें। जैव उर्वरकों से उपचार करने से मूंगफली में 15-20 प्रतिशत की उपज बढ़ोत्तरी की जा सकती है।सोयाबीन की फसल के बारे में जानने के यह क्लिक करे
बुवाई एवं बुवाई की विधि -
मूंगफली की बुवाई जून के द्वितीय सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह में की जाती है। झुमका किस्म के लिए कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखना चाहिए। विस्तार और अर्धविस्तारी किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 45 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सें.मी. रखना चाहिए। बीज की गहराई 3 से 5 से.मी. रखनी चाहिए। मूंगफली फसल की बोनी को रेज्ड/ब्रोड-बेड पद्धति से किया जाना लाभप्रद रहता है। बीज की बुवाई ब्रोड बेंड पद्धति से करने पर उपज का अच्छा प्रभाव पड़ता है। इस पद्धति में मूंगफली की 5 कतारों के बाद एक कतार खाली छोड़ देते है। इससे भूमि में नमीं का संचय, जलनिकास, खरपतवारों का नियंत्रण व फसल की देखरेख सही हो जाने के कारण उपज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण-
मूंगफली की अच्छी पैदावार लेने के लिये कम से कम एक निराई-गुड़ाई अवश्य करें। इससे जड़ों का फैलाव अच्छा होता है, साथ ही भूमि में वायु संचार भी बढ़ता है। और मिट्टी चढ़ाने का कार्य स्वतः हो जाता है, जिससे उत्पादन बढ़ता है। यह कार्य कोल्पा या हस्तचलित व्हील हो से करना चाहिए। रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण हेतु पेण्डीमिथेलीन 38.7 प्रतिशत 750 ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर की दर से बुवाई के 3 दिन के अंदर प्रयोग कर सकते है या खडी फसल में इमेजाथापर 100 मि.ली. सक्रिय तत्व को 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर बोनी के 15-20 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं। साथ ही एक निराई-गुड़ाई बुवाई के 30-35 दिन बाद अवश्य करें जो तंतु (पेगिंग) प्रक्रिया में लाभकारी होती है।
सिंचाई प्रबंधन -
मूंगफली वर्षा आधारित फसल है अतः सिंचाई की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती है। मूंगफली की फसल में 4 वृद्धि अवस्थाऐं क्रमशः प्रारंभिक वानस्पतिक वृद्धि अवस्था, फूल बनना, अधिकीलन (पैगिंग) व फली बनने की अवस्था सिंचाई के प्रति अति संवेदनशील है। खेत में अवश्यकता से अधिक जल को तुरंत बाहर निकाल देना चाहिए अन्यथा वृद्धि व उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
क्या आप जानते है ? ह्यूमिक एसिड क्या है और ये फसल के उत्पादन में कैसे वृध्दि करने के साथ साथ आपकी जमींन को बंजर होने से बचता है। जानने के लिए ऊपर वाली लाइन पर क्लीक करे।
कीटों की रोकथाम-
सफेद लट, बिहार रोमिल इल्ली, मूंगफली का माहू व दीमक प्रमुख है। सफेद लट की समस्या वाले क्षेत्रों में बुवाई के पूर्व फोरेट 10 जी या कार्बोयुरान 3 जी 20-25 कि.ग्रा/हैक्टर की दर से खेत में डालें।
दीमक के प्रकोप को रोकने के लिये क्लोरोपायरीफॉस दवा की 3 लीटर मात्रा को प्रति हैक्टर दर से प्रयोग करें।
रस चूसक कीटों (माहू, थ्रिप्स व सफेद मक्खी) के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./प्रति लीटर या डायमिथोएट 30 ई.सी. का 2 मि.ली./ली. के मान से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रयोग करें।
पत्ती सुरंगक कीट के नियंत्रण हेतु क्यूनॉलफॉस 25 ई.सी. का 1 लीटर/हैक्टर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
रोगों की रोकथाम-
मूंगफली में प्रमुख रूप से टिक्का, कॉलर और तना गलन और रोजेट रोग का प्रकोप होता है। टिक्का के लक्षण दिखते ही इसकी रोकथाम के लिए डायथेन एम-45 का 2 ग्रा./लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव 10-12 दिन के अंतर पर पुनः करें।
रोजेट वायरस जनित रोग हैं, इसके फैलाव को रोकने के लिए फसल पर इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./लीटर पानी के मान से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
खुदाई एवं भण्डारण -
loading...
जब पौधों की पत्तियों का रंग पीला पड़ने लगे और फलियों के अंदर का टेनिन का रंग उड़ जाये तथा बीज खोल रंगीन हो जाये तो खेत में हल्की सिंचाई कर खुदाई कर लें और पौधों से फलियाँ को अलग कर लें। मूंगफली खुदाई में श्रमह्रास कम करने के लिए यांत्रिक ग्राउण्डनट डिगर उपयोगी है।मूंगफली में उचित भंडारण और अंकुरण क्षमता बनाये रखने के लिए खुदाई पश्चात् सावधानीपूर्वक सुखाना चाहिए। भंडारण के पूर्व पके हुये दानों में नमीं की मात्रा 8 से 10% से अधिक नहीं होना चाहिए। अन्यथा नमीं अधिक होने पर मूंगफली में एस्परजिलस प्लेक्स फफूंद द्वारा एफलाटाक्सिन नामक विषैला तत्व पैदा हो जाता है जो मानव व पशु के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। यदि मूंगफली को तेज धूप में सुखाये तो अंकुरण क्षमता का हा्रस होता है।
अंकुरण क्षमता को बनाये रखने के लिए -
उपयुक्त नमीं होने पर ही मूंगफली को जमीन से निकाले।
मूंगफली को भूमि से उखाड़ने के बाद इसके पौधों को उल्टा करके, छोटे-छोटे गट्ठर बनाकर फलियाँ हमेंशा धूप की तरफ होना चाहिए।
पूर्णतया सूखी फलियों को हवादार स्थान में भण्डारित करना चाहिए। जहाँ पर नमीं ग्रहण नहीं कर सकें या फिर प्रत्येक बोरे में कैल्शियम क्लोराइड़ 300 ग्राम प्रति 40 कि.ग्रा. बीज की दर से भंडारण करें।
भण्डारण के समय हानि पहुँचाने वाले कीट पतंगो से सुरक्षा रखें, जिससे भंण्डारण के समय फलियाँ खराब नहीं हो।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें